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शनिवार, 19 अप्रैल 2014

ये बौखलाए हुए नेता जी !

                            ये लोकसभा चुनाव न हुए लगता है कि सारे दलों के नेता बौखला उठे हैं।  उनको सिर्फ और सिर्फ संसद में अपना बहुमत चाहिए चाहे इसके लिए वे अपने देश की महिलाओं को सूली पर चढ़ा दें या फिर उनकी इज्जत की धज्जियाँ उड़ाने वालों के लिए नए क़ानून बना कर उन्हें देश के रक्षकों में स्थान दे दें। 
               संसद में महिलाओं को ३३ % आरक्षण के विषय पर सबसे अधिक विरोध आप ही कर रहे थे न।  यही सपा महिलाओं को आदर देती हैं।   इस कदर बौखलाए हुए हैं कि सिर्फ एक ही पार्टी नहीं बल्कि सभी में रोज नए नए वक्तव्य सामने आते चले जा रहे हैं।  चुनाव की आचार संहिता को ताक पर इसलिए रख चुके हैं क्योंकि कहाँ तक प्रतिबन्ध लगाएगा  चुनाव आयोग ? एक बोलेगा तो दूसरा समर्थन करेगा और तीसरा पीठ थपथपाने के लिए तैयार खड़ा है।  
                              बस वो नहीं मैं ही सबसे अच्छा का नारा लिए हुए शहर शहर भाग रहे हैं।  सीधे सीधे काम न चला तो दूसरों के चरित्र पर कीचड उछाल कर अपने को अच्छा सिद्ध करने की चाल चलने लगे।  ये आज भी बिना पढ़े लिखे और पिछड़े इलाके लोगों के बल पर अपनी राजनीति करना चाहते हैं और नयी पीढ़ी को ऐसे लुभावने तोहफों का लालच देकर उन्हें अपने तरफ करना चाह रहे हैं . ये वही नेताजी हैं जिन्होंने अपने शासन काल में उत्तर प्रदेश में छात्रों को नक़ल करने की अनुमति देकर उनके खिलवाड़ किया था।  ऐसे बच्चों से किस भविष्य की वे कामना कर रहे थे।  फिर तो उन्हें ऐसे बच्चों को नौकरी भी लैपटॉप की तरह से बांटने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, हो सकता है की युवा वर्ग उनके झांसों में आकर उन्हें बहुमत दिला दे. इन्होने साफ साफ कहा था कि आपके शहर से हमें जीत नहीं मिली तो आपको बिजली क्यों दी जाय ? जो एक प्रदेश के स्तर पर मुखिया होने पर ऐसा बोल सकता है वो देश का मुखिया बन कर क्या करेगा? सोच सकते हैं जिसकी सोच इतनी महान हो ? उससे देश को गर्त में जाना है।  वो इतने जिम्मेदार पद को संभालने की क्षमता रखता ही नहीं है। 

                                 उनका कहना की सपा सबसे अधिक महिलाओं का आदर करती हैं बिलकुल नेता जी - तभी आप ने अपनी पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी की थी।  सबसे बड़ी मिसाल है आपके आदर देने की।  दूसरी मिसाल आप दे रहे हैं कि उनकी इज्जत से खेलने वालों के लिए माफी लाने का कानून बनाएंगे क्योंकि लड़कों से कभी कभी गलतियां हो जाती हैं।  कभी कभी नहीं बल्कि आपके शासन काल में उत्तर प्रदेश में अख़बार में प्रतिदिन ४-६  दुष्कर्म के सामने आ रहे हैं और  अधिकतर राजनैतिक रसूख वालों की छत्रछाया में पालने वाले लोग होते हैं।  आप ऐसे वक्तव्य देकर क्या साबित कर रहे हैं ? अगर भटके हुए लोगों के मत आप को मिल जाएंगे तो आधी आबादी आपको सिरे से नकार देगी।  
                                  आप सारे  आम धमकी देते हैं की अगर सपा को नहीं जिताया तो शिक्षक बनाने का सपना देखना भूल जाएँ।  हम उस अध्यादेश को वापस ले लेंगे।  नेता जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मालूम है कि आपके हाथ की कठपुतली है लेकिन आपकी ये बयानबाजी कहीं महँगी न पड़ जाय। अगर आप जैसे लोग सरकार बनाने लगेंगे तो जरूर ही देश का भविष्य अंधकार में डूबने वाला है क्योंकि जहाँ नेता में शालीनता , समदृष्टि और देश के प्रति प्रतिबद्धता न हो वह देश तो क्या एक प्रदेश चलने के काबिल भी नहीं समझा जा सकता है।  
                 आप तो अपने अपराधों की स्वीकारोक्ति खुले आम कर रहे है - 

  ऐसे नेता जो अपने को संविधान का रक्षक घोषित कर रहे हैं खुद को सेकुलर बताते हैं किस तानाशाह की बराबरी करने में कम दिख रहे हैं . उनकी इस स्वीकारोक्ति ने उन्हें निर्दोषों की हत्यारा घोषित कर रही है।  ऐसे लोगों को देश की बागडोर चली गयी तो सिर्फ वाही जीवित रह पाएंगे जो नेता जी के गुण गाएंगे। 
                                      उम्र के इस पड़ाव पर अमर सिंह जी कह रहे हैं कि देखो देखो हेमा मालिनी देखने की चीज हैं।  आप चुनाव के लिए प्रचार कर रहे हैं या फिर किसी नौटंकी में जुमला उछाल रहे हैं। देखने की चीज तो हर इंसान होता है बस उसमें वैसे गुण  होने चाहिए। जयाप्रदा जी भी देखने की चीज है , अपने समय में फिल्मों में एक खूबसूरत अभिनेत्रियों में से रही हैं।  उनके लिए भी ये जुमला बोला होता।  
                                       अपने अपने दल का प्रचार कीजिये न किसी पर कीचड उछालिये और न अपशब्दों का प्रयोग कीजिये।  जिन्हें बताने के लिए आप यह सब सुनते हैं वो मतदाता अपना बुद्धि विवेक रखता है।  आज हर वर्ग जागरूक है चिंता न कीजिये।  आप लोग खरीदते रहे और मतदाता बिकते रहे नतीजा ये है कि देश  कौड़ियों  के मोल बिकने की कगार पर आ गया।  
                                      वैसे मैं बता दूँ मेरी किसी भी नेता से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है लेकिन सब कुछ अपनी आँखों से देखते हुए कुछ न कर पाने की विवशता इंसान को पागल बना देती है।  अभी हमारे इलाके में रामनवमी पर दंगा होने की स्थिति बन गयी और उसमें किसकी क्या भूमिका थी ?  लेकिन प्रशासन ने सब कुछ दबा दिया और दोष निर्दोषों के सर मढ़ दिया और उन्हें अंदर कर दिया।  सच्चाई किसने और किससे पूछी है ? सब चुप हैं वे भी जिन्होंने अपने को खोया है।  कहीं न अखबार न समाचार में उसका कोई जिक्र नहीं और तो और वे खुल कर रो भी नहीं सके क्योंकि प्रशासन गला दबाने के लिए तैयार जो खड़ा है।  
                                  

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