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मंगलवार, 13 मई 2014

माँ : तुझे सलाम ! (1)

                                            मातृ दिवस वैसे तो पश्चिम से आया हुआ कहा जाता है लेकिन माँ की जगह तो शायद हर जगह एक जैसी ही है बल्कि हमारे देश में माँ का स्थान सबसे ऊँचा है क्योंकि वह जननी हो कर ब्रह्मा - सृष्टि , विष्णु - पालन , गुरु - संस्कार सभी के कार्य को सम्पादित करती है।  उसे वह जगह मिली हो या न मिली हो लेकिन उसने अपने हर बच्चे को वही जगह दी है। अपनी माँ सभी को प्यारी होती है लेकिन कभी कभी हम में से कुछ साथी उस आँचल से वंचित कर दिये जाते हैं , उस नियति की क्रुरता के शिकार होकर लेकिन उनके लिए माँ ये शब्द कितना संवेदनशील होता है इसकी  कल्पना कोईं भुक्तभोगी ही बता सकता है या फिर उसको गहराई  महसूस करने वाला।  वैसे तो  मातृ दिवस पर किसी और के खुशनुमा संस्मरण  भी प्रस्तुत करने के लिए हैं मेरे पास,  लेकिन सतीश जी वह पहले मित्र है जिन्होने मेरी मेल के साथ ही ये भेजा  था  और माँ के प्रति सभी मन मेन कोमल स्थान रखते हैं तो पहली कड़ी उनके ही नाम करती हूँ। 





 रेखा जी ,
मैं इस पोस्ट के योग्य नहीं मेरे पास उनका एक भी संस्मरण नहीं जो बता सकूं ….  

बचपन में जब मंदिर जाता ,
कितना शिवजी से लड़ता था ?
छीने क्यों तुमने ? माँ, पापा
भोले  से नफरत करता था !
क्यों मेरा मस्तक झुके वहां,जिसने माँ की ऊँगली छीनी !
मंदिर के द्वारे बचपन से,  हम  गुस्सा   होकर  बैठे हैं !

इक दिन सपने में तुम जैसी,
कुछ देर बैठकर चली गयी ,
हम पूरी रात जाग कर माँ ,
बस तुझे याद कर रोये थे !
इस दुनिया से लड़ते लड़ते , तेरा बेटा थक कर चूर हुआ !
तेरी गोद में सर रख सो जाएँ, इस चाह को लेकर बैठे हैं !


एक दिन ईश्वर से छुट्टी ले
कुछ साथ बिताने आ जाओ
एक दिन बेटे की चोटों को
खुद अपने आप देख जाओ
कैसे लोगों संग दिन बीते ?  कुछ दर्द  बताने  बैठे  हैं !
हम आँख में आंसू भरे, तुझे कुछ याद दिलाने बैठे हैं !





13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

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  2. माँ जाने कितने हो रूपों में हमारे सामने आती है बस पहचान की जरुरत होती हैं ..
    बहुत सुन्दर रचना के साथ सुन्दर हृदयस्पर्शी प्रस्तुति।

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  3. Atyant hridaysparshi. Itni bhaav vibhor kar dene wali prastuti ko padh kar man bhar aaya.

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  4. सतीश भैया .....माँ को लेकर आपने जब जब लिखा ...वो हमेशा से ही रुलाता आया

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