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शुक्रवार, 16 मई 2014

माँ तुझे सलाम ! (४)

   
                   माँ कहीं सामने होती है और उपेक्षित होती है लेकिन कहीं वह जीवन भर पलकों पर बिठायी जाती है।  उसके रहने भर से लगता है  कि  हम अभी बच्चे है क्योंकि  हमारे ऊपर किसी बड़े का साया है।  दिल खोल कर बात जो माँ से कर सकते हैं और किसी से नहीं कर पाते हैं।  उनसे बिछड़ने का दर्द हर किसी को होता है लेकिन जब उसको बाँट लेते हैं तो लगता है कि दिल हल्का हो गया।  अपने संस्मरण बाँट रही हैं -- अपर्णा साह !







 माँ एक ऐसा शब्द, न जिसे अलंकार की आवश्यकता है न ही कुछ विशेष शब्दों की।माँ एक ऐसा नाम ,ऐसा विषय जिसपर जितना भी लिखा जाय कम है क्योंकि इस एक शब्द में तो सारी  सृष्टि समाहित है,सृष्टि की सारी मूलभूत सरंचनाओं का आधार ममत्व ही तो है। भगवान की तरफ से दुनिया को दिया गया अद्भुत और अनमोल वरदान। पूरे ९ महीने  अपने पेट में रख अपने खून के बूंद-बूंद से एक जीव को रचती है और दुनिया से रूबरू करवाती है ,जभी तो माँ भगवान का दूसरा रूप हो जाती है। कोई माँ  बच्चों के दुःख को अपने दुखों से इतर कहाँ समझती है बल्कि हर वक़्त उसके दुखों को अपने दामन में समेटने को तत्पर रहती है। तभी तो हर इन्सान को उसकी माँ,दुनिया की सबसे अच्छी माँ नज़र आती है,सबसे मूल्यवान होती है जिसकी ममता की छाँव में वो अपने आप को सुरक्षित समझता है। मोहब्बत,प्यार,अपनापन,दुलार जो शब्द कहिये,पहला साक्षात्कार बच्चा माँ के रूप में ही तो करता है।
                     माँ एक खुशबु  की तरह तमाम उम्र हमसे लिपटी रहती है। जिन्दगी  का सुकून,आराम,लगाव सब एक अहसास में सिमटा रहता है। माँ के स्पर्श का अहसास करना,ममता को महसूसना ,कैसे उसे हम शब्दों का जामा पहनायें ,लेखनी में उस दर्द को,उस अलगाव की पीड़ा को कैसे सहेजें। रेखाश्रीवास्तवजी का अनुरोध---पर सच कहूँ तो २ सालों से इस एक शब्द पर मैं ध्यान तक नहीं दे पाती। आँखे आँसुओं से भर जाती हैं।
                        मेरी माँ को गुजरे २ साल हुए हैं,पर ये २ साल को आत्मसात करना मेरे लिए कठिन है। कितना मुश्किल होता है जब ये पता है की वो जा चुकी हैं,पर अपनी शख्सियत की उपस्थिति हर पल,हर कदम वो दर्ज करवाती हैं। बचपन से अधेड़ावस्था तक जिसके लिये हम बच्चे बने रहते हैं ,न कुछ सोचना,न ही किसी तरह का तनाव ,समाधान  और मार्गदर्शन मिलते रहता है। एक कंधा छिन जाता है जिसपर आप सर टिकाके हर झंझावातों का सामना कर सकते हैं,आँसुओं को बहा एक सुकूनदायक ,पुरजोर आत्मबल ले शान्ति पा सकते हैं। माँ नाम का मर्म तो तब समझ आता है जब हम खुद माँ बनते हैं। अपने खून से सींचकर जब हम एक जीव को धरती पे लाती हैं,उसके हर सुख-दुःख से एक तातम्य स्थापित हो जाती है। अदम्य अनुभूतियों से रूबरू हम होते हैं।बच्चे को कब भूख लगती है,कब पेशाब लगती है ,कब कोई दर्द होता है ,हम जान जाते हैं। बच्चे की किलकारी में स्वर्ग की ध्वनि सुनाई देती  है ,हम सभी बहनें इन अनुभूतिओं को जीती हैं। अभी कुछ महीने पहले मैं खुद इस अदृश्य,भयानक,अस्पष्ट दुःख को  गहराते देखी थी ,भवविह्वलता से व्याकुल मैं  गुहार लगाई थी औरफिर उसे छिटकते देखी थी नदी की धारा नीचे की ओर प्रवाहित होती है ,हर पल जो साक्ष्य है,दूसरे पल अतीत बन जाती है। पर ये रिश्ता तो अटूट है। मेरी माँ हमसे जो महसूस की होंगी ,शायद मैं न कर पाई होऊँ,मैं जो बच्चों के प्रति करती हूँ कदाचित मेरे बच्चें मेरे प्रति वो न कर पायें। लेकिन ये तय है की वो अपने बच्चों के प्रति अवश्य करेंगे। समय आगे ही तो गुजरते जा रहा है। 
                     माँ बच्चों के लिये गाई लोरी के सामान  सुखदायक है,रेगिस्तान  मे मीली  मींठी स्त्रोत के सामान है जो कभी तिश्नगी कि अनभूति न होने देती है बच्चों के सुख क्या दुःख भी  भगवान  उसे गर दें तो दामन फैला समेट लेगीं। बड़े लोग यूँही नहीं कह गये की माँ काशी-काबा  चारों धाम है। माँ का प्यार शाश्वत है ,बांटें नहीं बंटता। सृष्टि है तो माँ का अस्तित्व रहेगा हीं। माँ का महत्व कभी कम नहीं होगा ,दुनिया मे माँ का  पर्याय नहीं होगा। 
                       किस्मतवाले होते हैं वो जिनकी माँ होती है। 
                                                                             
अपर्णा साह

16 टिप्‍पणियां:

  1. कोई भी बच्चा हो वह सबके करीब अपने माँ को ही पाता है..
    माँ सदा दिल में रहती है।
    वे लोग अभागे होते हैं जो माँ की उपेक्षा करते हैं

    माँ को याद करती बढ़िया प्रस्तुति

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  2. माँ की ममता से किसी भी उम्र में स्वयम्‌ को विलग कर पाना नामुमकिन होता है ! माँ की ममता अथाह गहरे सागर की तरह होती है जिसमें बच्चा अपना हर दुख हर सुख हर चिंता हर भय विसर्जित कर स्वयम निश्चिंत हो जाता है ! बहुत सुंदर संस्मरण !

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  3. bahut sundar zazbaton ko shabdon me sanjoya hai aapne .aparna ji ke sundar vicharon ko sarthakta se prastut kiya hai aapne .

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  4. bahut sundar zazbaton ko shabdon me sanjoya hai aapne .aparna ji ke sundar vicharon ko sarthakta se prastut kiya hai aapne .

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  5. Ma- ye shabd sunte hi bhaavnayein bheeg jati hai. bahut hi achha likha hai

    shubhkamnayen

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  6. ......माँ शब्द ही संपूर्णता का अहसास है

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  7. सच में माँ के चरणों में सब कुछ है ... पूरा संसार है ...

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  8. bahut badhiya .. iske aage koi bhi shabd hi nahi ...maa kah diya bas sampurn srishti hi sama gyee

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  9. माँ एक ऐसा शब्द, न जिसे अलंकार की आवश्यकता है, सृष्टि की सारी मूलभूत सरंचनाओं का आधार ममत्व ही तो है आदि बहुत ही खूब्सूरत शब्दों मे लिखा है। फिर भी ऐसा अनुभव होता है कि माँ के बारे में कुछ लिखा ही नही। माँ एक ऐसा विस्तृत महिमा मण्डल है जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती है। मेरी माँ बचपन मे भग्वान के पास चली गई। बाबुजी ने मुझे रोने नहीं दिया और कहा कि तेरे पास ही है, जब बुलायगा, आ जायगी। मैने माँ के बारे मे बहुत कुछ लिखा - प्रस्तुत है - खुश होती है तो इन्द्रधनुष पहन लेती है दु:ख होता है तो सब रंग समेट लेती है
    वह किरण है जहाँ से भी गुजर जाती है
    अनगिनत खिलखिलाते रंग उकेर लेती है
    निसार सबकुछ करती है गुलिस्ताँ के लिये।
    आभार अपर्णा जी का जिन्होने मुझे आपके बारे मै बताया ।

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  10. माँ ,तुझे बापस , बुलाना चाहता हूँ !
    इक असंभव गीत , गाना चाहता हूँ !

    इक झलक तेरी, मुझे मिल जाये तो,
    एक कौरा ही, खिलाना चाहता हूँ !

    मुझसे हो नाराज, मत मिलना मुझे,
    अपने बच्चों से, मिलाना चाहता हूँ !

    जानता हो अब न तुम आ पाओगी
    सिर्फ सपने में , बुलाना चाहता हूँ !

    जाने कितनी बार ये, रुक -रुक बहे !
    माँ, मैं आंसू को,जिताना चाहता हूँ !

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  11. aah...kya Satish ji, kya sach...rula diye aap to...bahut khoob

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  12. sabhi sudhi doston ko...hausala hafjai ke liye tahe dil se shukriya.....Rekha ji aapka bhi shukriya,aapne hamare aalekh ko apne charcha me jagah dia.....

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.