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गुरुवार, 5 जून 2014

माँ तुझे सलाम ! (17)


              माँ को हम सबसे अधिक ज्ञानी , अनुभवी और प्यार देने वाली समझते हैं और ऐसा होता भी है लेकिन कई बार ऐसी बातें होती हैं जिनके बारे में  हम जानते है और न उसकी जरूरत समझते हैं।  फिर अचानक कुछ ऐसा पता चले तो सहसा उसके लिए विश्वास नहीं कर पाते  हैं और वास्तविकता जानने के बाद भी विश्वास नहीं होता।  ऐसे  ही अपने विश्वास को चुनौती देते हुए सबसे सवाल कर रहे हैं : रवीन्द्र प्रभात जी।  







मेरी माँ, अनपढ़ कैसे हो सकती है.....?
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मेरी माँ !

जी हाँ  मेरी माँ अनपढ़ है । यह जानने में मुझे मेरा बचपन गुजर गया। सच कहूँ तो मुझे मेरी माँ ने कभी आभास ही नहीं होने दिया कि वह अनपढ़ है। जब मैं बाल्यावस्था में था और गोधुलि के समय खेलकर जैसे ही घर आता, एक सख्त आवाज़ कान में आती । इतनी देर तक खेलोगे तो पढ़ोगे कब? ऑफिस से आने दो तुम्हारे बाबूजी को कहकर ऐसी डांट खिलाउंगी कि खेलना ही भूल जाओगे।

फिर मैं मिन्नतें करता कि बाबूजी से मत कहना, कल से लेट नहीं करूंगा। इतना सुनते  ही वह मन ही मन मुसकुराती और कहती ठीक है जल्दी से हाथ-मुंह धो लो और बैठ जाओ पढ़ने। जो न समझ में आए पूछ लेना। फिर कहती आज मास्टर साब ने कुछ होम वर्क दिया है तो पहले उसे कर लो तब तक तुम्हारे बाबूजी आ जाएँगे तो उनसे गणित हल करा लेना। इतना कहकर वह रसोई में चली जाती और वहीं से पूछती कि अभी क्या कर रहे हो। मैं कहता फार्मूले याद कर रहा हूँ। तो वह रसोई से ही चिल्लाकर कहती कि ज़ोर-ज़ोर से पढ़ो ताकि गलत पढ़ने पर मैं टोक सकूँ।

हालांकि ऐसी नौबत कभी नही आयी कि माँ को टोकना पड़े। कभी मुझे हिन्दी के तो कभी अँग्रेजी के अखवार थमा देती और कहती कि इसका मेन-मेन न्यूज पढ़ो। मैं जैसे ही पढ़ना शुरू करता मेरी बड़ी बहन यानि शैल दीदी को हिदायत देकर किसी न किसी काम में उलझ जाती कि यह जितनी बार गलत उच्चारण करे मुझे बताना। इसको ऐसी सजा दूँगी कि जीवन भर याद रखेगा।

सुबह में नियमित रूप से 4 बजे जगा देती और कहती यह ब्रह्म बेला है, इस समय जो भी याद करोगे जीवन में कभी नही भूलोगे। मेरी माँ को रामचरित मानस की कतिपय चौपाइयाँ सहित पंचतंत्र की असीम कहानियाँ कंठस्थ है। उनके इस ईश्वरप्रदत याददाश्त के कारण ही हम सभी भाई-बहनों का यह भ्रम हमेशा बना रहता था कि माँ बहुत पढ़ी लिखी हैं, उनके सामने कभी गलत उच्चारण नही करना। नहीं तो बहुत मार पड़ेगी।

           मैं हाई स्कूल कर गया और नही जान पाया कि मेरी माँ अनपढ़ है और जब जाना तो कई दिनों तक यह विश्वास हुआ ही नहीं कि मेरी माँ सचमुच अनपढ़ है?

बात उन दिनों की है जब हम सपरिवार सीतामढ़ी के रमनगरा लॉज में एक किराए के मकान में रहते थे। बाबूजी ने शहर के ही इंदिरा नगर में एक प्लॉट खरीद रखा था और दो कमरे बनवा रखे थे। किन्तु जगह रहने लायक न होने के कारण वे परिवार को वहाँ शिफ्ट करने के पक्ष में नही थे। मैं हाई स्कूल करने के बाद वहाँ अकेले रहने की इच्छा जताई। बाबूजी राजी हो गए इस शर्त पर कि सुबह-शाम खाने के समय तुम परिवार के साथ गुज़रोगे बाकी समय वहाँ रहकर पढ़ाई कर सकते हो। मैं तैयार हो गया।
  
          एक बार की बात है कि मैं रात के करीब नौ बजे घर से खाना खाकर निकाला और रास्ते में लखनदेई पुल पर अचानक मेरा पैर फिसल गया और मैं पुल से लगभग बीस फीट नीचे बड़े-बड़े नुकीले पत्थरों पर जा गिरा। फिर मुझे कुछ याद नही, आंखे खुली तो सदर अस्पताल के जनरल वार्ड में अपने आपको पाया। सामने बैठे परिवार के लोगों की आंखे नाम थी। मेरा दाहिना घुटने में फैक्चर हो गया था और पूरा शरीर जख्मी। खैर तीन-चार दिनों के बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई और घर आ गया। घर पर इलाज के दौरान डॉक्टर ने माँ को समझाया कि कब-कब कौन सी दवा देनी है और वह अपना सिर हिलाती रही। डॉक्टर ने यह भी कहा कि सब कुछ इस पर्चे में लिखा है, न समझ में आए तो पढ़कर समझ लीजिएगा।

               बाबू जी ऑफिस चले गए, दीदी स्कूल चली गई हमेशा की तरह माँ सारा काम छोडकर मेरी सेवा में लग गयी। अचानक मेरे घुटने का दर्द बढ़ गया और मैं दर्द से कराहने लगा। मेरी सेवा में इतना मशगूल थी कि दर्द में कौन सी दवा देनी है वह अचानक भूल गई। उसे कुछ भी समझ में नहीं आया तो वह मेरी ओर पर्चा बढ़ाते हुये पूछी कि देखकर बताओ कि इस समय तुम्हें कौन से दवा लेनी है। दर्द ज्यादा होने के कारण मैंने झल्लाकर कहा कि तुम खुद पढ़कर क्यों नही देख लेती कि मुझे कौन सी दवा लेनी है?
इतना सुनते ही वह फफक-फफक कर रोने लगी। उसे रोते देख मुझसे रहा नही गया और मैंने जब रोने का कारण जानना चाहा तो सुनकर हतप्रभ रह गया कि मेरी माँ को पढ़ना-लिखना नहीं आता।
        खैर उस दिन के बाद से आज तक मुझे विश्वास नही हुआ कि अपने चार बच्चों को उत्कृष्ट तालीम देने वाली मेरी माँ अनपढ़ कैसे हो सकती है?    
       हमारे जीवन की सभी संभावनाओं के मूल में असीम प्यार, त्याग, महान सेवाएं देने वाली मेरी माँ अनपढ़ कैसे हो सकती है?

        यदि आपके पास इस प्रश्न का उत्तर हो तो बताएं, क्योंकि यह प्रश्न मेरे जेहन में आज भी अनुत्तरित है।

3 टिप्‍पणियां:

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  2. रविन्द्र जी , हमारी माँ पढ़ी चाहे काम हों या ज्यादा या बिलकुल भी नहीं लेकीन वह जीवन के अनुभवों से इतनी समृद्ध होती हैं की कहा जाता है वह पढ़ी नहीं गाढ़ी है . उनकी चतुराई ही उनकी साडी शिक्षा होती है . इस पर मुझे अपनी दादी का किस्सा याद अत है वो पूरी खेती बड़ी का हिसाब रखती थी और पैसे वसूल करती थीं कहीं कोई गलती नहीं होती . सरे धार्मिक ग्रन्थ पढ़ लेती थी लेकिन पत्रिका या अख़बार जब पद्धति तो शेष पृष्ठ नहीं खोज पाती थीं वह हम लोगों से कहती की इसका पृष्ठ निकल कर दो. वह अंकों के विषय में भ्रमित रहती थीं .

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  3. पहले बङे संयुक्त परिवारों की मुखिया दादी माँ होती थी, घर की व्यवस्था से लेकर सामाजिक सरोकार तक बहुत करीने से निपटाती थी, वास्तव में कुशल प्रशासक और यही गुर बहुओं को विरासत में मिल जाते, बिना प्रबन्धन पढ़े-लिखे ये लोग सब कुछ बढ़िया तरीके से संभालते

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