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मंगलवार, 16 जून 2015

धीमा जहर हम ले रहे हैं !

                      मैगी का हंगामा एक तूफान की तरह उठा और इतने वेग से कि उसमें उसके ब्रांड एम्बेसडर भी हिल गए। जबकि जहाँ तक मेरा ज्ञान है की किसी भी  उत्पाद की गुणवत्ता कंपनी ही बताती है और आम आदमी उस प्रतिनिधि के प्रभावशाली प्रस्तुति और व्यक्तित्व से सबसे अधिक प्रभावित होता है। 
                                कौन सा उत्पाद अपनी गुणवत्ता के साथ समझौता करने लगे इसके बारे में ब्रांड एम्बेस्डर नहीं जान पता है और वह उसी प्रमाणिकता पर विश्वास करके अपना करार पूरा करता रहता है। अगर उन्हें भी वास्तविकता का ज्ञान हो तो वे भी इससे समझौता नहीं करेंगे. लेकिन इसके लिए हमारे उत्पाद गुणवत्ता प्राधिकरण भी अपनी ढुलमुल नीति के तहत कितनी चीजों को अनदेखा कर रहा है। 

                              ये जरूरी नहीं कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चीजों का सम्मिश्रण विदेशी उत्पादों में ही मिले। हमारे देशी उत्पाद बल्कि रोज मर्रा की जरूरी चीजें से इससे बची नहीं है। आज की खबर के अनुसार मदर डेयरी के दूध में डिटर्जेंट की मिलावट पायी गयी। ये तो रोजमर्रा की चीज है और काम या ज्यादा हर व्यक्ति प्रयोग करता है। दिल्ली जैसे शहरोँ में गाय या भैंस का दूध आसानी से उपलब्ध नहीं और न सुबह नौकरी के लिए निकलने वाले लोग उसको प्राप्त कर सकते हैं। 
                              मैंने तरबूज का प्रयोग खुद देखा है उसमें से लाल पानी के स्थान पर सफेद पानी निकल रहा था और महक भी आ रही थी। बाद में एक विडिओ भी देखा कि किस तरह से उसमें शक्कर और लाल रंग का इंजेक्शन लगते देखा जिसके वजह से वह लाल और अधिक मीठा भी दिखाई दे रहा है। उनको रातों रात विकसित करने के लिए केमिकल के  प्रयोग ने उसमें पड़ने वाले बीजों के रूप को ही ख़त्म कर दिया। हम शौक से खा रहे हैं क्या इसकी कोई जांच नहीं होनी चाहिए। विक्रेता से पूछने पर है हाई ब्रीड कह कर टाल देते हैं।
                                                            


                              अब क्या खाया जाए और क्या नहीं ? लेकिन ये केमिकल का प्रयोग करने वाले क्या अपने उत्पाद के अतिरिक्त किसी और चीज के केमिकल के शिकार नहीं होंगे. होंगे और जरूर होंगे लेकिन फिर भी दूसरों के जीवन को सिर्फ पैसे की हवस में खतरनाक रोगों की और धकेल रहे हैं। हर इंसान हर चीज को खुद तो पैदा करके नहीं खा सकता है फिर क्यों नहीं हम दूसरों के लिए अच्छा सोचते हैं।
                              

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